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ज़मज़मा

सितार वादन में यह क्रिया जब दो स्वरों को एक दूसरे के बाद एक ही आघात में जल्दी-जल्दी बजाने से जो एक प्रकार की हिलती हुई आवाज़ उत्पन्न होती है, उसे ज़मज़मा कहते है। यह उर्दू भाषा का शब्द है जिसका अर्थ दो स्वरों का बार- बार उच्चारण करना है । जब एक स्वर को तर्जनी उंगली द्वारा दबा कर ध्वनि उत्पति करके उससे अगले स्वर पर मध्यमा उंगली द्वारा ज़ोर से मारने पर उसकी हल्की सी ध्वनि सुनाई पड़ती है, इस क्रिया को कम से कम दो बार या अधिक बार करना ही ज़मज़मा कहलाता है । ज़मज़मा दो उंगलियों की सहायता से निकलता है । बाएं हाथ की पहली उंगली परदे पर स्थित रहती है और दूसरी उंगली हरकत करती है । सितार वादन में ज़मज़मा बजाने का नियम यह है कि बाएं हाथ की तर्जनी को स के परदे पर और मध्यमा उंगली को रे के परदे पर ज़ोर से मारते हुए कभी छोड़ें तथा कभी दाबें । ऐसी क्रिया में दाएं हाथ की तर्जनी से मिज़राब द्वारा दा या रा बजाते रहे । ऐसा करने से जो स्वर समूह सुनाई देता है, वह क्रिया ज़मज़मा कहलाती है ।
ज़मज़मा दो प्रकार से लिया जाता है । आरोहात्मक ज़मज़मा में पहले तर्जनी उंगली वाले स्वर को तथा मध्यमा से उसके आगे वाले स्वर को छूते हुए तथा मिज़राब के आघात करते हुए शीघ्रता से बजाते है । ऐसी प्रक्रिया से सरे सरे सरे, रेग रेग रेग, गम गम गम इत्यादि स्वरावलियां आरोहात्मक प्राप्त होती है ।
अवरोहात्मक ज़मज़मा प्रक्रिया में पहले मध्यमा उंगली से तार को स्वर पर दाबे तथा पिछले स्वर पर तर्जनी उंगली को स्थापित किया जाए तथा दाएं हाथ से मिज़राब द्वारा आघात करते हुए मध्यमा उंगली को उठाएं तथा फिर दबा कर उठाएं । ऐसा करने से अवरोहात्मक स्वरावलियां प्राप्त होंगी ।
जैसे :-    म ग म ग म ग , ग रे ग रे ग रे , रे स रे स रे स , इत्यादि।