सितार
वादन में झरने जैसी निरन्तरता लिए हुए तेज़ गति में बजने वाली इस क्रिया में
मिज़राब द्वारा तारों को एक विशेष प्रकार से छेड़ कर झंकार उत्पन्न करना झाला
कहलाता है । दूसरे शव्दों में बाज और चिकारी के तार पर एक समान लय में और ध्वनि
को बिना खण्डित किए क्रम से मिज़राब द्वारा प्रहार करके दा रा रा रा बजाने की क्रिया
को झाला कहते है । इस क्रिया में पहले बाज के तार पर, दाएं हाथ से मिज़राब द्वारा दा का बोल बजा कर चिकारी की तार पर रा रा रा के
बोल बजाते है । तथा बाएं हाथ से परदों पर स्वर समूहों का, मीण्ड,
कृन्तन, कपन इत्यादि क्रियाओं द्वारा नियोजन
करते रहते है । सितार वादन की इस क्रिया को दोनों हाथों के संयुक्त प्रयोग
द्वारा बजाया जाता है । इस क्रिया में ज़रब का काम बहुत ही आकर्षक ढंग से किया
जाता है ।
यह
क्रिया द्रुत गत के पश्चात् की जाती है । वादक कलाकार अति द्रुत गति में, हस्त कौशल का प्रदर्शन करते हुए गति की निरन्तरता को बनाए रखता है ।
झाले की सुन्दरता उसकी निरन्तरता पर निर्भर करती है । एक टिकी हुई लय में झाला
और भी आकर्षक लगता है । इसमें मिज़राब के विभिन्न बोलों छन्दों का प्रयोग इस क्रिया
को और भी आनन्द दायक बना देता है ।
मिज़राब
के बोलों को बाज और चिकारी के तारों पर प्रहार कर तथा मिज़राब के बोलों में फेर बदल
कर विभिन्न प्रकार के झाले बनाए जाते है । झाले के सामान्यतः दो प्रकार होते है
।
1. सीधा
झाला 2. उल्टा झाला
1.
सीधा झाला :- सीधा झाला में मिज़राब का पहला प्रहार बाज की तार पर बजाते हुए ‘दा’
का बोल तथा चिकारी की तार पर प्रहार करते हुए तीन ‘रा रा रा’ के बोल बजाते है, जिससे यह समूह दा रा रा रा बनता है । इसे ‘सुलट’ या सीधा झाला कहते है ।
2.
उल्टा झाला :- वादन की इस क्रिया में मिज़राब का पहला बोल चिकारी का तार अर्थात्
इस झाले में सम चिकारी की तार पर दिखाया जाता है फिर बाज की तार पर दा तथा अन्य
दो रा रा के बोल फिर चिकारी की तार पर बजाए जाते है । जैसे - रा दा रा रा, इस विधि से बजाने से जो समूह बनेगा उसे उल्टा झाला कहते है ।
सितार, सुरबहार तन्त्री वाद्यों में बाज और चिकारी के तार को भिन्न-भिन्न क्रम
से छेड़ कर झाला बजाया जाता है । झाला एक मनोरंजक क्रिया है । छन्द लय और स्वरों
के सामंजस्य से इसकी छटा ही निराली रहती है । विभिन्न प्रकार के छन्दों को लय की
अविरल और द्रुत गति में पिरो कर प्रदर्शित करते हुए विचित्रता और उत्सुकता पैदा
करना झाला का मुख्य लक्ष्य होता है । झाले में प्रायः लय समान होती है ।
अनेकानेक आड़ी तिरछी लय में चमत्कार पूर्ण वादन करते हुए अन्त में तिहाई लगा कर
झाला के साथ-साथ वादन की समाप्ति की जाती है ।