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वादन संगीत का भविष्य ( Future of Instrumental Music )

    वादन संगीत के शुभचिन्तक वादन संगीत के विषय का भविष्य जानना चाहते है . यह अच्छी बात है परन्तु साथ ही इस से एक निराशाजनक अथवा चिन्ता की भावना भी झलकती है , जो इस विषय की शिक्षा के भविष्य में झांकने से पूर्व , वादन संगीत की स्थिति पर एक नजर डालना आवश्यक है ।

    वादन संगीत की प्रारम्भिक स्थिति :- संगीत को गायक , वादन एवं नृत्य - इन तीनों कलाओं का समन्वय माना गया है । गायन , वादन और नृत्य संगीत के यह तीनों अंग एक - दूसरे से गहरा संबंध रखते है । प्राचीन आचार्यों ने गायन के अन्तर्गत वादन और वादन के अन्तर्गत नृत्य को मान कर , गायन को सर्वोत्तम स्थान दिया है । आज भी प्रायः गायन को ही सर्वोत्तम माना जाता है । इसका एक कारण यह भी है कि गायक के कंठ में विलक्षण ताकत होती है , जिस प्रकार की आवाज व भावाभिव्यक्ति गायक करना चाहता है , उसके लिए गले में असीम शक्ति होती है । यही कारण है कि ख्याल गायकी को उत्तम माना जाता है परन्तु धीरे - धीरे वादकों ने भी तन्त्रकारी की अपेक्षा अपने वाद्यों में ' गायकी अंग ' अपनाने लग पड़े हैं । इनमें से सबसे अग्रणी नाम उस्ताद विलायत खाँ साहब का है , जो सितार बजाते समय , साथ में बाकायदा गाते भी थे और तत्पश्चात् कंठ की प्रत्येक हरकत और भाव को सितार पर बजा कर दिखाते थे । जब वाद्यों में भी उतनी ही भावुकता उत्पन्न करने की शक्ति हो गई है , तो इसको निम्न या अधीन कला क्यों माना गया है ? यह विचारणीय है ।

    वादन संगीत में रूपान्तर :- गायन संगीत को भले ही उत्तम माना जाता रहा है परन्तु वाद्यों ने आज जैसा विकास किया है , उसकी पहले शायद ही किसी ने कल्पना की हो । पंडित रवि शंकर ने सितार और उस्ताद अली अकबर ने सरोद को गत लगभग पचास वर्षों तक भारत के बाहर विदेशों मैं अपनी वाद्य कला का झंडा लहराया । इसी बीच उस्ताद विस्मिल्लाह खाँ की शहनाई , राम नारायण की सारंगी , हरि प्रसाद चौरसीया की बाँसुरी , शिव कुमार शर्मा का संतूर , श्रीमति एन.राजम की वायलिन , अमजद अली ख़ाँ का सरोद और उस्ताद जाकिर हुसैन के तबले ने विश्व व्यापी बहुत प्रतिष्ठा अर्जित की । पंडित रवि शंकर ( सितार ) ने अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तीन ग्रैमी अवार्ड प्राप्त किये । गत कुछ वर्षों में पंडित विश्व मोहन भट्ट ने गिटार ( मोहन वीणा ) को भी ग्रैमी अवार्ड दिलवाया । हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन से पहले वादन संगीत को विश्व में व्यापक दृष्टिकोण पर सराहना हुई और इसने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान बनाया । इस प्रकार विदेशों में भारतीय वादन संगीत का खूब प्रचार बढ़ा । यही नहीं अनेक वादक कलाकारों को अपने - अपने वाद्य में उच्चतम राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलंकरणों से नवाजा गया ।

    20 वीं शताब्दी में वादन के क्रियात्मक पक्ष में ही नहीं बल्कि वाद्यों में भी जबरदस्त परिवर्तन आया । परिवर्तित समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कलाकारों के साथ मिलकर वाद्यों - निर्माताओं ने वाद्यों की बनावट में अनेक परिवर्तन किये । वाद्यों के आकार प्रकार का वाद्यों की वादन शैली से गहरा संबंध है , इसलिए गत कई वर्षों से वादन शैलियों में भी बदलाव आ रहा है । ऐसा परिवर्तन सामाजिक कारणों से होता है परन्तु दिन - ब - दिन यह परिवर्तन सफल भी होता रहा है ।

    वादन संगीत की वर्तमान स्थिति :- वादन संगीत की वर्तमान स्थिति यह है कि आज वाद्यों का प्रयोग शास्त्रीय , उप शास्त्रीय , लोक संगीत , सूफी संगीत , भक्ति संगीत , गुरमति संगीत , पॉप संगीत तथा चित्रपट संगीत इत्यादि में बाखूबी हो रहा है । यही नहीं , संगीत के उपर्युक्त सभी प्रकारों में प्रत्येक शैली के लिए भिन्न - भिन्न वाद्य हैं । यहाँ तक कि हिन्दुस्तान के प्रत्येक प्रदेश में अपने क्षेत्रीय लोक वाद्य प्रचलित हैं । यहीं बस नहीं , नृत्य और नाट्य का संयोजन भी वाद्यों के साथ ही होता है । और यदि पृष्ठभूमि में वादन संगीत न बज रहा हो , तो उसके बिना अधूरे लगते हैं । वादन संगीत आज इतना हावी हो चुका है कि शास्त्रीय वाद्यों के अतिरिक्त लोक वाद्यों के वाद्यवृन्द , पश्चिमी वाद्यों के वाद्यवृन्द और प्रचलित संगीत वाद्यवृन्द के बिना अधूरा लगता है । विश्वविद्यालयों के युवक मेले , विशेष दिन व त्यौहार , विवाह इत्यादि कार्य यहाँ तक कि होटलों और पार्टियाँ वादन संगीत से ही शोभा देती हैं । वादन संगीत के साथ ही मस्त होकर लोग झूमते और गाते हैं । वादन संगीत का घेरा इतना व्यापक है , तो इसका भविष्य इतना अंधकारमय कैसे हो सकता है ।

    तर्क और सुझाव :- आज विश्वविद्यालयों में वादन संगीत को एक विषय के रूप में सीमित दायरे में विचारा जाता है , यहाँ कुछ शास्त्रीय वाद्यों ( उत्तर भारत में विशेष रूप में सितार ) में कुछ रागों की संख्या देकर इसके भविष्य संबंधी चिन्ता जताई जाती है । आज आवश्यकता है , अपनी सोच के सीमित दायरे से निकल कर , समय के साथ कदम मिलाने की । वादन संगीत के विषय को वर्तमान सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की । इस संबंधी कुछ सुझाव इस प्रकार हैं

    - वादन संगीत का दायरा बढ़ा कर नये वाद्यों की शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाये ।

    - विद्यार्थियों को वादन संगीत का सही चुनाव करने के लिए उत्तम मार्ग दर्शन किया जाए ।

    - संगीत के साधारण अध्ययन और विशेष अध्ययन अर्थात् संगीत संबंधी कोई व्यवसाय उपलब्ध करवाने की शिक्षा को भिन्न - भिन्न पक्षों से विचारा जाये ।

    - पहले वादन संगीत की उचित व्यवस्था हो जाने के पश्चात् उसके अनुकूल उचित शिक्षकों व कलाकारों की नियुक्ति की जाये ।


    ऐसा होने से ही वादन संगीत का विषय विद्यार्थियों के लिए लाभान्वित प्रमाणित होगा और साथ ही एक विषय विद्यार्थियों की सामाजिक , आर्थिक आवश्यकताओं व उनकी परिवर्तित रूचि व समयानुकूल बन सकेगा । इस प्रकार वादन संगीत के विद्यार्थी उपर्युक्त व्यापक क्षेत्र में कोई न कोई व्यवसाय प्राप्त करके , संगीत को अपने जीवन के लिए उपयोगी बना सकेंगे ।