Translate

पं रवि शंकर

 वर्तमान युग में सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर जी की कीर्ति आज विश्व भर में फैली हुई है । अपनी कलात्मक प्रतिभा व ज्ञान के बल पर इन्होंने भारतीय मधुर वाद्य ' सितार ' को विदेशी संगीत जगत में लोकप्रिय बनाया । प्रो . हरीश चन्द्र श्रीवास्तव के शब्दों में , आप ऐसे रवि हैं , जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की किरणों को विदेशों में पहुँचाया और भारत का मस्तक ऊँचा किया । 
जन्म और संगीत - शिक्षा विख्यात कलाकार पंडित रवि शंकर का जन्म 7 अप्रैल , 1920 को वाराणसी में डॉ . श्याम शंकर के घर हुआ । डॉ . श्याम शंकर अपने समय के माने हुए विद्वान थे । चार भाईयों में सबसे छोटे पंडित रवि शंकर पर अपने बड़े भाई पंडित उदय शंकर , जो प्रसिद्ध नृत्यकार थे , का बड़ा प्रभाव पड़ा । यही कारण है कि इनकी संगीत शिक्षा नृत्य से आरम्भ हुई । 10 वर्ष की बाल्यावस्था में ही पंडित जी ने अपने बड़े भाई पंडित उदय शंकर की नृत्य मण्डली के साथ विदेशों का भ्रमण किया । इसी दौरान जो आपकी प्रतिभा सन् 1935 में आप उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के साथ सम्पर्क में आए , से बड़े प्रभावित थे और कभी - कभी आपको सितार की शिक्षा भी दिया करते थे । 
नृत्य में पंडित रवि शंकर को कमाल हासिल था , किन्तु धीरे - धीरे आपकी विशेष रुचि सितार में होने लगी । अपने मैहर आकर उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ से सितार की शिक्षा प्रारम्भ कर दी । सच्ची लगन , गुरु - भक्ति व वर्षों निरन्तर अभ्यास की कठिन तपस्या के पश्चात् , आप उस्ताद की कृपा के पात्र बने । इनकी कला - कुशलता को देखते हुए उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ साहब ने भी सितार वादन सम्बन्धी प्रत्येक जानकारी इन्हें दिल खोल कर दी । इस से इनकी कला निरन्तर विकसित होती गई । यही नहीं , सन् 1941 में अलाउद्दीन ख़ाँ साहब ने अपनी पुत्री अन्नापूर्णा देवी , जो कि सितार और सुर - बहार की कुशल कलाकार थी , का विवाह पंडित रवि शंकर जी से किया । 
वादन शैली - पंडित रवि शंकर की वादन - शैली में स्वर - शुद्धता , स्वर लगाव और स्वर - माधुर्य अतुल्य थे । अपनी वादन शैली में यह परम्परागत नियमों की ही पालना करते थे । विस्तापूर्वक अलाप , जोड़ अलाप करने के पश्चात् ही मसीतखानी व रज़ाखानी गतें क्रमानुसार बजाते थे । तीनताल के अतिरिक्त अन्य तालों में भी वह उतनी ही सरलता व कुशलता से बजाते हैं । पंडित रवि शंकर ने सितार की परम्परागत शैली में निखार पैदा किया । अपने वादन में बीन अंग व गायकी अंग का समन्वय करके कृन्तन , ज़मज़मा , खटका और लयकारी इत्यादि का स्पष्ट प्रयोग किया । आप के अलाप , जोड़ में बीन अंग की स्पष्ट छाया दिखाई देती है । 
योगदान -
  1. सितार में ' लरज की तार ' को प्रारम्भ करने का श्रेय पंडित रवि शंकर जी है , जिसके फलस्वरूप आज सितार पर वीणा वादन के प्रत्येक अंग का वादन सम्भव हुआ है । सितार , जिसको अलाप , जोड़ तथा बीन अंग के गम्भीर वादन के लिए अनुपयोगी ठहराया जाता था , की धारणा को पंडित जी ने ग़लत साबित किया । 
  2. पंडित रवि शंकर ने भारीतय वाद्य वृन्द के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया । कुछ विदेशी वाद्यों को भारतीय वाद्य वृन्द में शामिल करके इसका स्तर ऊँचा किया । आपके वाद्य वृन्द में शास्त्रीय , उप - शास्त्रीय और लोक गीतों पर आधारित धुनें मिलती हैं , किन्तु अधिकांश रचनाएँ शास्त्रीय रागों पर ही आधारित हैं । 
  3. कर्नाटकी तथा उत्तरी संगीत पद्धतियों में सामीप्य लाने के लिए इन्होंने दक्षिणी हंसध्वनि , चारुकेशी इत्यादि रागों का प्रचार उत्तर भारतीय संगीत में बढ़ाया । मोहन कोंस , तिलक श्याम , बैरागी , रसीया , रंगेश्वरी और कामेश्वरी इत्यादि नवीन रागों की रचना भी पंडित जी ने की । 4. संगीत प्रचार हेतु सन् 1962 में ' किन्नर स्कूल ऑफ म्यूजिक ' की स्थापना की । 
  4. पंडित रवि शंकर ने बंगला फिल्म ' काबुलीवाला ' , ' पाथेर पांचाली ' , हिन्दी फिल्में ' अनुराधा ' , ' गोदान ' और अंग्रेज़ी फिल्म ' द फ्लूट एण्ड दि ऐरो ' का संगीत निर्देशन भी किया । 
  5. सन् 1969 से 1974 के दौरान आप ने अमेरीका और योरुप के श्रेष्ठ कलाकारों के साथ ' भारतीय उत्सव ' की रचना और निर्देशन किया । उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरु की पुस्तक ' डस्कवरी ऑफ इण्डिया ' पर संगीतमय रूपक लिखा और उसका संगीत निर्देशन किया । सर्वश्रेष्ठ योगदान यह कि दिल्ली में नौंवे ऐशियाई खेलों में संगीतमय धुन आपकी ही कृति थी । 
  6. आधुनिक काल में विदेशों में भारतीय संगीत के प्रचार का श्रेय पंडित रवि • शंकर को प्राप्त है । इन्होंने अमेरीका , जर्मनी , इटली , हालैंड , बैल्जियम , फ्रांस , नायें , स्वीडन , कनाडा इत्यादि देशों में अपनी कला का प्रदर्शन करके पश्चिमी जनता में भारतीय संगीत के गौरव को बढ़ाया । 
पुस्तक लेखन - पंडित रवि शंकर की वाद्य वृन्द की रचनाओं का संग्रह ' रवि शंकर के आर्केस्ट्रा ' नामक पुस्तक में किया गया है । संगीत संबंधी व्याख्या व स्वै - जीवन परिचय इन्होंने एक पुस्तक ' माई म्यूज़िक माई लाईफ ' अंग्रेज़ी भाषा में दिया है । इसमें बचपन से लेकर इनका सम्पूर्ण जीवन वृत्तान्त , संगीत शिक्षा , संगीत गुरु और संगीत क्षेत्र में इनके योगदान का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । वास्तव में सितार की जानकारी के लिए यह बहुत उपयोगी पुस्तक है । 
सम्मान व उपाधियाँ - विख्यात संगीतज्ञों को सम्मानित किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है । सन् 1962 में पंडित जी को ' संगीत नाटक अकादमी ' पुरस्कार से सम्मानित किया गया । सन् 1975 में आपको अकादमी की ' फैलोशिप ' प्राप्त हुई । सन् 1977 में भारत सरकार द्वारा ' पद्म ' भूषण ' व सन् 1991 में सर्वोच्च अलंकरण ' पद्म विभूषण ' द्वारा सम्मानित किया गया । 1986 में भारत सरकार ने आपका चुनाव राज्य सभा के लिए किया । सन् 1999 में आपको सर्वश्रेष्ठ अलंकरण ' भारत रत्न ' से सम्मानित किया गया है । पंडित रवि शंकर एक ऐसे सौभाग्यशाली कलाकार थे , जिन पर देश और विदेशों में भी उपाधियों की वर्षा हुई । विदेशों में आपको इंटरनैशनल म्यूज़िक वैनसको , ' द सिलवर बीयर ' और ' वैनिस फेस्टीवल अवार्ड ' से सम्मानित किया गया । पंडित रवि शंकर को संगीत जगत का सर्वोच्च अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान ' ग्रेमी अवार्ड ' से तीन बार सम्मानित किया गया है । साथ ही सन् 1992 में रोमन मेगासयसय अवार्ड और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सहित , विश्व की 14 विश्वविद्यालयों ने आपको ' डाक्ट्रेट ' की उपाधि से सम्मानित किया । 
शिष्य - पंडित जी के शिष्य वर्ग में उमा शंकर मिश्र , जया बोस , कार्तिक कुमार , शमीर अहमद , शंकर घोष गोपाल कृष्ण , सुरेन्द्र दत्ता और विनय कुमार अग्रवाल के नामों के अतिरिक्त पश्चिमी बीटल गायक जार्ज हैरिसन का नाम उल्लेखनीय है । विदेश में आप की बेटी अनुष्का शंकर सितार की एक श्रेष्ठ कलाकार हैं । 12 दिसंबर , 2012 में आप सदैव के लिए संगीत जगत को बिछोड़ा दे गये ।