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राग भीमप्लासी

यह राग काफी थाट के अन्तर्गत आता है ।  इसमें नी कोमल लगते है तथा शेष सभी स्वर शुद्ध लगते है ।  औढ़व - सपूर्ण जाति है ।  आरोह में रे ध वर्जित है ।  वादी म तथा संवादी स है ।  कुछ गुणीजन इसका वादी प भी मानते है ।  यह उतरांगवादी राग है ।  इसका गाने बजाने का समय दिन का तीसरा प्रहर है ।  इसके समप्राकृञ्तिक राग धनाश्री, धानी तथा काफी है। 
यह चारों राग काफी थाट के है ।  तीनों में नी कोमल तथा शेष सभी स्वर शुद्ध लगते है ।  धनाश्री तथा भीमपलासी लगभग मिलते - जुलते राग है ।  दोनों की जाति औढ़व सपूर्ण है ।  दोनों के आरोह में रे ध वर्जित है ।  धनाश्री में पंचम पर तथा भीमपलासी में मध्यम पर न्यास किया जाता है ।  भीमपलासी में स से सीधा ग पर जाने का प्रचार है ।  जबकि धनाश्री में सगमप जाते है ।  भीमपलासी में पग और मग की स्वर संगति को महत्व दिया जाता है ।
धनाश्री की जाति औढ़व - औढ़व है ।  कुछ गुणीजन औढ़व - षाढ़व मानते है ।  अधिकांश विद्वान पहले मत से सहमत है ।  आरोहावरोह दोनो में रे ध को वर्जित मानते है । 
दूसरे मतानुसार आरोह में रे ध वर्जित तथा अवरोह में ध वर्जित मानते है ।  जबकि भीमपलासी के अवरोह में सभी स्वरों का प्रयोग किया जाता है ।  जैसे :- सं नी ध प म रे स ।  धानी के गन्धार पर बार - बार न्यास किया जाता है, जबकि भीमपलासी में मध्यम पर ।  धानी से बचाने के लिए रे और ध का प्रयोग अवरोह में करते है । 
इसका तीसरा समप्राकृतिक राग काफी है ।  काफी की जाति सपूर्ण - सम्पूर्ण है ।  जबकि भीमपलासी की जाति औढ़व सपूर्ण है ।  भीमपलासी का वादी स्वर म तथा संवादी स्वर स है जबकि काफी का वादी स्वर प तथा संवादी स्वर रे है ।  कुछ विद्वान काफी में शुद्ध गंधार तथा निषाद का प्रयोग भी करते है ।  जबकि भीमपलासी में केवल नी कोमल का ही प्रयोग किया जाता है । 

आरोह :- स रे नी़ स म - - म प नी सं ।
अवरोह :- सं नी ध प म प म - - रे स ।
पकड़ :- स रे नी़ स म - - म प रे स ।
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