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राग जै जैवंती


यह राग खमाज थाट के अंतर्गत है | इस राग में दोनों गंधार तथा दोनों निषाद का प्रयोग होता है | इसके आरोह में ग - नी शुद्ध तथा अवरोह में - नी का प्रयोग किया जाता है | यह सम्पूर्ण - सम्पूर्ण जाति का राग है | इसका वादी स्वर रे और संवादी स्वर प है | यह पूर्वांगवादी राग है | इसका गायन वादन समय रात्रि का दूसरा पहर है | यह एक परमेल प्रवेशक राग है | इस राग में मंद्र सप्तक प़ से मध्य सप्तक रे तक घसीट युक्त जाने का प्रचलन है तथा रे पर ग का कण लगते है | इस राग को दो अंगों से गाने बजाने का प्रचलन है | कुछ गुणीजन इसे देश अंग से गाते है तथा कुछ बागेश्री अंग से |


राग जैजैवन्ती           रज़ाखानी गत          तीनताल                 द्रुतलय
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स्थाई
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रे
गग
रे
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नी़
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दा
दिर
दा
रा
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रा
दा
रा
रे
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रे
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रे
गग
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दा
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दा
रा
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दा
दिर
दा
रा
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मंझार
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रे
गग
मम
पप
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ध-
धम
-म




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दा
दिर
दिर
दिर
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दा-
रदा
-रा
दा
रे
गग
मम
गग
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रे-
रे
-रे
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दा
दिर
दिर
दिर
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दा-
रदा
-रा
दा
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अन्तरा
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मम
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नी
नीनी
सं
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दा
दिर
दा
रा
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दा
दिर
दा
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रें
गंगं
रेंरें
संसं
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रें-
रेंनी
-नी
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दा
दिर
दिर
दिर
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दा-
रदा
-रा
दा
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रें
नीनी
नी
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दा
दिर
दा
रा
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-
रा
दा
रा
रेरे
गग
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रे-
रेनी़
-नी़
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दा
रा
दिर
दिर
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दा-
रदा
-रा
दा
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तोड़े :-

1.      रेग      मप     नी    धप     रेग      मग     रे      रेस
2.      प़प़     रेरे      पप     रेंरें      नी    मग     रे      रेस
3.      नी़स    रेस     रेग      मग     नी    मग     रे      रेस
4.      मप     नीसं    रेंसं     नी    मग     मग     रे      रेस      -नी़     ध़प़     रे-       -नी़     ध़प़     रे-       -नी़     ध़प़
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