कहरवा ताल – विस्तृत परिचय
कहरवा ताल भारतीय सुगम संगीत की एक अत्यंत लोकप्रिय, सरल और बहुप्रयुक्त ताल है। इसका प्रयोग संगीत, नृत्य और लोकसंगीत के विभिन्न रूपों में सदियों से होता आ रहा है। विशेष रूप से यह ताल भजन, गीत, ग़ज़ल, लोकगीत, कव्वाली, फिल्मी गीत, नृत्य-संगीत और हल्के-फुल्के गायन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसकी सरलता और लयात्मक प्रवाह के कारण यह संगीतकारों, गायक-वादकों और नर्तकों के बीच बेहद प्रिय है।
इस ताल में कुल 8 मात्राएँ होती हैं। इन 8 मात्राओं को दो बराबर भागों (विभागों) में बाँटा जाता है, प्रत्येक विभाग में 4-4 मात्राएँ होती हैं। पहला विभाग 1 से 4 मात्राओं तक और दूसरा विभाग 5 से 8 मात्राओं तक होता है। इस ताल में पहली मात्रा (1) पर ताली दी जाती है, जिसे सम भी कहा जाता है। यह ताल का सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदु होता है और यहीं से लय की शुरुआत होती है। पाँचवीं मात्रा (5) पर खाली दी जाती है, जिसे 0 से चिह्नित किया जाता है। खाली का अर्थ है कि यहाँ हाथ की ताली के बजाय हथेली को ऊपर की ओर करके इशारा किया जाता है या केवल हाथ हिलाया जाता है।
वाद्यों की दृष्टि से कहरवा ताल मुख्य रूप से तबला, ढोलक, ढोल, मृदंग जैसे ताल वाद्यों पर बजाई जाती है। आधुनिक संगीत में इसे ड्रम, इलेक्ट्रॉनिक पर्कशन और अन्य वाद्यों पर भी प्रस्तुत किया जाता है। लोकसंगीत में ढोलक पर कहरवा ताल का बजना सबसे आम है, जबकि शास्त्रीय और अर्धशास्त्रीय मंच पर तबला इसका मुख्य वाद्य होता है।
थेका – कहरवा ताल
विभाजन: 4 + 4
ताली / खाली संकेत:
ताली (सम) – 1वीं मात्रा (ताली 1)
खाली – 5वीं मात्रा (ताली 0)
कहरवा ताल (एक गुण)
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चिन्ह
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x
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0
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मात्रा
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1
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2
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3
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4
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5
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6
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7
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8
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बोल
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धा
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गे
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ना
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ति
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न
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क
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धिं
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ना
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दुगुन
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धागे
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नाति
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नक
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धिंना
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धागे
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नाति
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नक
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धिंना
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विशेषताएँ और उपयोग
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सरल संरचना – 8 मात्राओं का छोटा चक्र, जिसे याद रखना आसान है।
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बहुउपयोगिता – भजन, फिल्मी गीत, लोकगीत, ग़ज़ल, कव्वाली सभी में उपयुक्त।
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लय में प्रवाह – नृत्य में ताल के चरण स्पष्ट रूप से उभरते हैं।
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अभ्यास में सहायक – शुरुआती विद्यार्थियों के लिए ताल और लय का अभ्यास कराने में आदर्श।
कहरवा ताल सुगम संगीत का ऐसा आधार है जो न केवल सरल और मधुर है बल्कि श्रोता और कलाकार दोनों को एक साथ जोड़ने की क्षमता रखता है। इसके सहज बोल, स्पष्ट ताली-खाली और लय का प्रवाह इसे संगीत शिक्षा में प्रथम पसंद बनाते हैं। चाहे वह मंदिर का भजन हो, मंच की ग़ज़ल, या गाँव का लोकगीत—कहरवा ताल अपने अद्वितीय लयात्मक आकर्षण से हर रूप में संगीत को जीवंत बना देती है।