यह राग
काफी थाट का आश्रय राग है । इसमें ग और नी
कोमल तथा शेष सभी स्वर शुद्ध लगते है।
इसकी जाति सपूर्ण - सपूर्ण है ।
इसका वादी प तथा संवादी स है । यह
पूर्वांगवादी राग है । इसका गायन - वादन
समय रात्रि का दूसरा प्रहर है । राग की
सुन्दरता बढ़ाने के लिए इसमें शुद्ध ग और नी का भी प्रयोग कर लिया जाता है ।
आरोह :-
स रे ग म प ध नी सं ।
अवरोह
:- सं नी ध प म ग रे स ।
पकड़ :-
सस रेरे गग मम प- ।