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पंडित निखिल बैनर्जी

 

जन्म तथा संगीत शिक्षा 

उच्चकोटि के सितार वादक स्व ० पंडित निखिल बैनर्जी का जन्म 14 अक्टूबर , सन् 1931 को कलकत्ता के एक साधारण परिवार में हुआ । इन्होंने अपनी प्रतिभा , संगीत साधना , मनोबल तथा अथक परिश्रम से आधुनिक युग के अग्रणी सितार वादकों में अपना एक अलग स्थान बनाया । सितार वादन के क्षेत्र में इन्होंने एक विशिष्ट वादन शैली की सृजना की । 

निखिल बैनर्जी ने सितार की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता स्व ० जितेन्द्र बैनर्जी से प्राप्त की । 9 वर्ष की अल्पायु में आप ने बंगाल में आयोजित ' आल इण्डिया सितार रिसाइटल ' में अपने सितार वादन द्वारा अपनी प्रतिभा का अच्छा संकेत दिया । तत्पश्चात् आपने सरोद वादक राधिका मोहन मोइतरे तथा कुछ समय तक सितार वादक मुश्ताक अली ख़ाँ से सितार की शिक्षा ग्रहण की । गौरीपुर के श्री वीरेन्द्र किशोर राय चौधरी से भी इन्होंने शिक्षा ग्रहण की , जो बाद में आप को महान् उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ की शरण में ले गए । लगभग 6 वर्षों तक आपने मैहर में रह कर ही उस्ताद अलाउद्दीन खां से संगीत की शिक्षा प्राप्त की । ' बाबा ' ( अलाउद्दीन ख़ां ) के कठोर बंधन और इनके निरन्तर अभ्यास ने रंग दिखाया और आपने एक कुशल सितार वादक के रूप में ख्याति अर्जित की । सन् 1952 से 1956 तक निखिल बैनर्जी उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां के सुपुत्र उस्ताद अली अकबर ख़ां ( प्रसिद्ध सरोद वादक ) और सुपुत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी से भी संगीत की शिक्षा ग्रहण की । प्रसिद्ध सरोद वादकों से शिक्षा ग्रहण करके निखिल बैनर्जी के सितार वादन में सरोद की झलक आनी तो स्वभाविक ही थी , साथ ही सन् 1950 के पश्चात् सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद अमीर ख़ां की गायकी का प्रभाव भी इनकी वादन शैली पर पड़ा । इससे सितार में इनकी तान क्रिया में बड़ी विचित्रता आई । 

मैहर से कलकत्ता लौटने पर निखिल बैनर्जी ने तानसेन - संगीत - सम्मेलन में भाग लेकर अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया और साथ ही संगीत शिक्षा लेते रहे । 

संगीत कार्यक्रम 

सन् 1955 में निखिल बैनर्जी भारतीय सांस्कृतिक मंडलों के साथ कई बार विदेश गए और भारतीय संगीत के गौरव को बढ़ाया । अमेरिका , इंग्लैंड व पश्चिमी यूरोपीय देशों में यात्रा दौरान फ्रांस में इन्हें बड़ा सम्मान मिला । रूस , चीन , आस्ट्रेलिया , अफगानिस्तान तथा नेपाल इत्यादि की यात्रा दौरान भी इन्होंने भारतीय संगीत के गौरव को बढ़ाया । ' अमेरिकन सोसाइटी ऑफ ईस्ट्रन आर्टस ' की तरफ से आप शिक्षक के रूप में अमेरिका गए । कैलिफोर्निया स्थित ‘ अली अकबर कॉलेज ऑफ म्यूज़िक ' में भी आप शिक्षा देते रहे । 

निखिल बैनर्जी ने अपने संगीत कार्यक्रमों के प्रारम्भ में कई बार गुरु उस्ताद अली अकबर खां के साथ युगल बन्दी भी प्रस्तुत की । विशाल हृदय के मालिक उस्ताद अली अकबर खां ने निखिल बैनर्जी के प्रारम्भिक कठिन समय में इनकी सहायता की तथा इनका नाम अपने नाम के साथ जोड़कर चमकाया । तत्पश्चात् अपनी प्रतिभा के बल पर निखिल बैनर्जी संगीत प्रेमियों के हृदय पर छा गए । निखिल बैनर्जी की यह निजि विशेषता थी कि उनके अन्दर आन्तरिक वलवला , राग की सच्चे रूप की अवतारणा , रागरूप को अनुभव करने का दृष्टिकोण भिन्न था । कहा जाता है कि एक बार राम कृष्ण मिशन की ओर से आयोजित एक संगीत कार्यक्रम में निखिल बैनर्जी का सितार वादन रखा गया , जिसमें श्रोताओं की संख्या बहुत कम थी । निखिल बैनर्जी को इसका किंचित भी अफसोस नहीं हुआ और न ही इसका प्रभाव उनके वादन पर पड़ा । बल्कि उन्हें इस बात की सन्तुष्टि थी कि कला प्रदर्शन से उनका ' रियाज ' तो हो गया है । 

आकाशवाणी के लगभग सभी केन्द्रों से निखिल बैनर्जी के प्रोग्राम प्रसारित होते रहते थे । आपने कई बार अपना सितार वादन आकाशवाणी के अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में भी दिया । इनके द्वारा बजाये गए कुछ राग जैसे - केदार , हेम ललित , मिश्र गारा , जौनपुरी , ललित , मालकौंस , अड़ाना , सिंधु भैरवी , सोहनी , मेघ , भटियार , पूरीया कल्याण तथा मांड इत्यादि के रिकार्ड भी निकले । विदेशों में भी इनके कई रिकार्ड भरे गए । 

वादन शैली 

संगीत की शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त निखिल बैनर्जी ने जब संगीत जगत में प्रवेश किया तो इन्होंने अनुभव किया कि सितार के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर और उस्ताद विलायत खां का ही बोल बाला है । इनकी अपनी अपनी विशेष वादन शैली है तथा प्रत्येक उभरता हुआ कलाकार इन्हीं का अनुकरण करने का प्रयत्न करता है । निखिल बैनर्जी ने दोनों उस्तादों की वादन शैली के विशेष गुणों को आत्मसात् करके सितार के क्षेत्र में अपनी नवीन वादन शैली की सृजना की और सितार जगत पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ा । 

निखिल बैनर्जी एक घरानेदार कलाकार तो थे ही परन्तु साथ ही उनके सितार वादन में अपनी विलक्षणता थी । सितार पर आप बड़े मुश्किल काम करते थे । तानों में लयकारी करना तथा अति द्रुत लय में झाला बजाना इनके लिए बड़ा स्वाभाविक था । गम्भीर तंत्रकारी और लय विचित्रता का प्रदर्शन इनके वादन के विशेष गुण थे । अलाप , लयकारी , तान , बांट , उपज इत्यादि का पूर्ण अभ्यास तथा मींड , गमक इत्यादि क्रियाओं का अद्भुत प्रयोग इनके वादन में होता था । 

सितार वादन प्रस्तुत करते समय किसी प्रकार की बाहरी चमक दमक की अपेक्षा , मींड व गमक के हृदय स्पर्शी प्रयोगों से निखिल बैनर्जी श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर लेते थे । सितार पर आप जो भी राग बजाते उसे पूर्ण स्थिरता , ठहराव और गम्भीरता पूर्वक प्रस्तुत करते थे । सितार पकड़ते ही वह किसी दूसरी दुनियां में विचरण करने लगते और बिल्कुल ध्यान मग्न होकर रागालाप करते थे । निखिल बैनर्जी के मनपसन्द रागों में राग ललित , केदार , सिंदूरा , हेमन्त , हेम - ललित , मालकाँस , जौनपुरी , मेघ , सिन्धु भैरवी , काँसी कान्हड़ा तथा पूरीया कल्याण इत्यादि विशेष रूप से वर्णन योग्य हैं । इन रागों को आप तीन ताल , झपताल , रूपक ताल इत्यादि तालों में बड़ी कुशलतापूर्वक बजाते थे । निखिल बनर्जी के सितार वादन में एक अन्य विशेषता यह भी थी कि आप अपने साथ संगति करने वाले तबला वादक को भी बजाने का पूरा अवसर देते थे और उसकी प्रशंसा भी करते थे । यह इस बात का प्रमाण है कि उन्हें अपनी कलात्मक साधना पर पूर्ण विश्वास था । अपने सितार वादन पर तबला वादन के हावी हो जाने का भय नहीं था । यहां तक कि अपने साथ संगति करने वाले नये तबला वादक को भी पूर्णत : उत्साहित करते और उसके भय अथवा संकोच को दूर कर उसे बजाने का अवसर देते थे । उनका सह स्वभाव उनके अन्तर्मन के एक सच्चे कलाकार की भावनाओं को स्पष्ट दर्शाता है । 

सम्मान व उपाधियां 

निखिल बैनर्जी यद्यपि अपने समकालीन वादकों जैसे पं ० रवि शंकर , उस्ताद विलायत ख़ां , उस्ताद अली अकबर खां आदि में से सबसे कम आयु के थे परन्तु लोकप्रियता व कला निपुणता के पक्ष से वह किसी से कम नहीं थे । सन् 1968 में भारत सरकार की ओर से आपको पद्म श्री ' की उपाधि से सम्मानित किया गया । सन् 1974 में आपको ' संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ' द्वारा सम्मानित किया गया । सन् 1986 में भारत सरकार ने मरणोपरान्त आप को पद्म भूषण ' से अलंकृत किया । 

27 जनवरी , 1986 की दुःख भरी सुबह को निखिल बैनर्जी संसार को त्याग कर , संगीत जगत् में अपना स्थान सदैव के लिए रिक्त कर गए । यद्यपि निखिल बैनर्जी शारीरिक तौर पर आज हमारे बीच नहीं रहे तथापि उनकी मधुर सितार वादन की झंकार सदैव ही संगीत प्रेमियों के हृदय को झंकरित करके आपकी याद को अमर रखेगी । 

सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर ने आपके निधन का दु : खद समाचार पाते ही कहा , ' निखिल जैसे चमत्कारी शिलपी के चले जाने से जो क्षति हुई है , वह अपूर्ण है । 

' प्रसिद्ध सरोद वादक अमज़द अली खां ने निखिल बैनर्जी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था , ' सितार जगत् ने एक महान् व्यक्तित्व खो दिया है । '