स्वरों की क्रमानुसार चलन को अलंकार कहते हैं । प्रत्येक अलंकार में मध्य सा से तार सा तक आरोही वर्ण और तार सा के मध्य सा तक अवरोही वर्ण हुआ करता है ।
'संगीत दर्पण' के अनुसार इसकी परिभाषा इस प्रकार दी गई है:
'विशिष्ट वर्ण सन्दभम् लंकार प्रचक्षते'
अर्थात नियमित वर्ण-समूह को अलंकार कहते हैं । अलंकार का अवरोह, आरोह का ठीक उल्टा होता है, जैसे:-
आरोह - सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सां
अवरोह - सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा
आरोह - सासा, रेरे, गग, मम, पप, धध, निनि, सांसां
अवरोह - सांसां, निनि, धध, पप, मम, गग, रेरे, सासा
आरोह - सारेग, रेगम, गमप, पधनी, धनिसा
अवरोह - सानिध, निधप, धपम, पमग, मगरे, गरेसा
इसी प्रकार अनेक अलंकारों की रचना हो सकती है। अलंकार को पलटा भी कहते हैं।