यह राग हिन्दोस्तानी मुख्य दस थाटों के अन्तर्गत नही आता फिर भी इसे तोड़ी थाट
जन्य राग मुलतानी का समप्राकृतिक होने के कारण तोड़ी थाट के अन्तर्गत माना जाता है
। दक्षिणी संगीत पद्दति के अनुसार इसे
धर्मवती थाट के अन्तर्गत रखा जा सकता है ।
इस राग में ग कोमल , मे तीव्र तथा शेष सभी स्वर शुद्ध लगते है ।
कभी - कभी इस राग में कोमल नी का प्रयोग गुणीजन कर लेते है । इसकी जाति औढ़व सपूर्ण है । इसके आरोह में रे और ध को वर्जित किया जाता है
। इसका वादी स्वर प और संवादी स्वर स है
। यह उतरांग प्रधान राग है । इसका गाने बजाने का समय दिन का अन्तिम प्रहर है
। यह परमेल प्रवेशक राग है । इस राग में रे पर बार - बार न्यास किया जाता है
। इसके समप्राकृतिक राग मुलतानी और पटदीप
है । मुलतानी जैसा चलन होने के कारण यह
मुलतानी के साथ मिलता है । दोनो रागों में
एक जैसी स्वर संगतियों का प्रयोग किया जाता है ।
जैसे - ग म प ग
इन दोनो रागों का आरोह एक जैसा है किन्तु मधुवन्ती में रे और ध का प्रयोग इसे
मुलतानी से अलग करता है । मधुवन्ती में प
नी सं गं रे सं नी ध प करने से पटदीप की छाया आती है । अतः पटदीप से बचाने के लिए तीव्र म तथा मध्यम
कण युक्त गंधार का प्रयोग किया जाता है ।
आरोह :- नी़ स ग मे प, मे प नी सं ।
अवरोह :- सं नी ध प मे प ग, मे ग रे स ।
पकड़ :- नी़ स ग मे प मे ग मे ग रे स ।