Translate

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ

 

शहनाई के शहनशाह उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ अपनी कला के जादू के लिए विख्यात थे । वर्तमान युग में शहनाई वाद्य को लोक - प्रिय बनाकर , उसे अन्य भारतीय शास्त्रीय संगीत वाद्यों की बराबरी पर लाने के पश्चात् उन्नति के शिखर पर पहुँचाने का श्रेय काशी के इस सुप्रसिद्ध शहनाई वादक को है । यद्यपि आपके पूर्वज भी शहनाई वादक थे , परन्तु आप ने अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और अथक प्रयासों से अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की । भारतीय तो भारतीय , विदेशी भी आपकी कला के दीवाने थे । 


जन्म तथा संगीत शिक्षा 

उस्ताद विस्मिल्लाह ख़ाँ का जन्म सन् 1908 ई ० के लगभग ( संगीत नाटक अकादमी , दिल्ली द्वारा प्रकाशित Who's who of Indian Musicians के अनुसार 21 मार्च , 1916 ) संगीत की भूमि वाराणसी के भोजपुर ग्राम में हुआ । आपके पूर्वज भोजपुर दरबार में शहनाई वादक थे । आपके पिता पैगम्बर बख्श तथा आपके तीन मामा अली बख्श , विलायत हुसैन और सादिक अली अपने समय के अच्छे शहनाई वादक थे । 

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ अपने मामा अली बख्श के शिष्य थे । अली बख्श , एक शहनाई वादक होने के साथ साथ अच्छे गायक भी थे । उन्होंने छ : वर्ष की आयु में आपको शहनाई की शिक्षा देनी प्रारम्भ की । बचपन से ही स्कूल की पढ़ाई में आपको अधिक रुचि नहीं थी परन्तु संगीत की शिक्षा आप मन लगा कर लेते थे । आपकी रुचि को देखते हुए स्कूल की शिक्षा छोड़ देने की अनुमति आपको पिता से मिल गई । तत्पश्चात् आप संगीत साधना में जुट गए । बनारस में बाला साहब के मन्दिर में बैठकर आम निरंतर संगीत साधना करते थे । बचपन से ही प्रतिभाशाली और परिश्रमी होने के कारण आप बड़ी तीव्र गति से शहनाई पर अधिकार प्राप्त करने लगे । साथ ही संगीत सम्मेलनों में कला प्रदर्शन का अनुभव भी आपको मिलता रहा । आपके मामा अली बख्श जब कभी भी किसी संगीत सम्मेलन में जाते , आपको साथ ले जाते थे । कुशल शिक्षा , संगीतमय वातावरण , प्रतिभा , लगन , कड़ी मेहनत तथा अनुभव संगीत के लिए यह सभी आवश्यक तत्व आपको सौभाग्यवश बालपन से ही प्राप्त हो गए । फलस्वरूप 17-18 वर्ष की आयु में एक होनहार कलाकार के पूर्ण लक्षण आप में विद्यमान थे । 


संगीत कार्यक्रम 

सन् 1926 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित संगीत सम्मेलन में आपका अथम सार्वजनिक कला प्रदर्शन हुआ । इस सम्मेलन में आप ने उपस्थित श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया । इस सम्मेलन में भारत के चोटी के संगीतज्ञ उपस्थित थे , जिन्होंने आपकी भरपूर प्रशंसा की । इस सम्मेलन में आप को बहुत से पदक एव प्रमाण पत्र प्रदान किए गए और आपकी ख्याति दूर - दूर तक फैल गई । तत्पश्चात् आपको संगीत सम्मेलनों से निमन्त्रण मिलने लगे । 

बिस्मिल्लाह ख़ाँ के भाई शमसुद्दीन ख़ाँ भी एक उच्चकोटि के शहनाई वादक थे , आप जिस संगीत सम्मेलन में भी बजाते , इक्टठे ही बजाते थे परन्तु शीघ्र ही भाई का देहान्त हो गया । इस से आपको गहरी चोट पहुँची । आपने शहनाई बजाना बन्द कर दिया परन्तु लोगों के आग्रह पर अपने पुनः बजाना प्रारम्भ किया । तत्पश्चात् केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की । 

सन् 1962 में अफगानिस्तान , 1965 में यूरोप , इरान , कनेडा , पश्चिमी अमेरिका , 1967 में इराक , यूरोप , 1970 में जापान व हाँगकाँग का भ्रमण करके आप ने शहनाई वाद्य को अन्य वाद्यों के समान लोक - प्रिय बनाया । आपने सोवियत संघ की सांस्कृतिक सोसाइटी में भी भाग लिया और भारत के गौरव को बढ़ाया । आपके कार्यक्रम आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित होते रहते हैं और हज़ारों की संख्या में आपके शहनाई के रिकार्ड निर्मित हो चुके हैं । कला और मिठास की दृष्टि से आप के रिकार्ड बहुत उच्चकोटि के हैं । यही कारण है कि किसी भी मांगलिक अवसर का प्रारम्भ आपके शहनाई वादन के रिकार्ड से किया जाता है । हाल ही में प्रसार भारती के वर्षों के प्रयासों के फलस्वरूप आपके कुछ दुर्लभ रिकार्ड प्राप्त हुए हैं । यह दुर्लभ रिकार्ड अब संगीत प्रेमियों के लिए उपलब्ध होंगे । 


वादन शैली 

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ , जितनी कुशलतापूर्वक शास्त्रीय रागों का निर्वाह करते उतनी ही कुशलता से आप उप शास्त्रीय तथा लोक धुनों को प्रस्तुत करते हैं । यही कारण है कि केवल संगीत मर्मज्ञ ही नहीं अपितु साधारण श्रोता भी आपके वादन की ओर आकर्षित हो जाते थे । 

आपके स्वर लगाने की विधि अन्य वादकों से भिन्न होती है । स्वरों की कल्पना व उपज असाधारण होती थी । स्वरों की बढ़त , आप परम्परागत विधि से करते हैं । विभिन्न प्रकार की तिहाईयां , कण व मींड हृदय विदारक होते थे । सांस पर आपका असाधारण अधिकार था । भावों को सीधा श्रोताओं के हृदय में उतार देने का सामर्थ्य आप में था । 

शहनाई वादन की संगति हेतु आप तबले की अपेक्षा खुर्दक वाद्य अधिक पसन्द करते थे । आपके विचारानुसार खुर्दक की आवाज़ में तबले की अपेक्षा गूंज कम होने के कारण , वह शहनाई की आवाज़ में मिल जाती थी । 

इस कठिन वाद्य पर ख़ाँ साहब को इतना अधिकार प्राप्त था कि 90 से अधिक आयु में भी शहनाई पर आपकी पकड़ बनी हुई थी और आप उत्तनी तन्मयता से ही बजाते थे । 

जनवरी 2003 में आपके प्रवासी भारतीयों के लिए आयोजन पर आपने सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर के साथ जुगलबंदी प्रस्तुत की । अगस्त 2003 में पार्लियामेंट में श्रीमति सोमा घोष ( आपकी मुँह बोली पुत्री ) के गायन के साथ जुगलबंदी की और अगस्त में ही दिल्ली के कमानी आडिटोरीयम में कार्यक्रम प्रस्तुत किया । इसी वर्ष के अन्त में , दिसम्बर 2003 में कोलकत्ता में अमज़द अली ख़ाँ के सरोद वादन के साथ जुगलबंदी प्रस्तुत की । आपके सचिव एस . जावेद अहमद के अनुसार आप भी एक वर्ष में लगभग पाँच - छ : कार्यक्रम करते थे । आपके तीनों सुपुत्र नय्यर हुसैन , ज़मीन ( शहनाई ) पर और नज़ीम ( तबले ) पर आपके साथ संगति करते हैं । 


सम्मान तथा उपाधियाँ 

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ भारत के महान् शहनाई वादक के रूप में अनेक स्वर्ण पदक प्राप्त किये । भारत सरकार की ओर से आपके अद्वितीय योगदान के लिए आपको उत्कृष्ट अलंकरण प्रदान किए गए । वास्तविकता तो यह है कि प्रत्येक पुरस्कार व अलंकरण खां साहब के हाथों स्वयं सम्मानित हो उठता था । 

  • सन् 1956 में राष्ट्रपति द्वारा ' संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ' प्राप्त किया । 

  • सन् 1968 में भारत सरकार ने आपको पद्म भूषण ' के अलंकरण से विभूषित किया तथा सन् 1980 में आपको सर्वश्रेष्ठ अलंकरण ‘ पद्म विभूषण ' अर्जित हुआ । सन् 2001 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के . आर . नारायणम द्वारा भारत का सर्वोत्तम सम्मान ' भारत रल ' से भी आप सम्मनित किए गए । 

  • सन् 1994 में संगीत नाटक अकादमी की फैलोशिप प्राप्त की । 

  • मार्च 1996 में प्रख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ को काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में डी.लिट , की उपाधि से सम्मानित किया गया । 

  • केन्द्र सरकार ने शहनाई के इस जादूगर को उनकी प्रतिभा तथा ज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रोफेसर नियुक्त किया है । 

  • फरवरी 2004 को अपको पाँचवें स्वदेशी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । इसमें आपको ढाई लाख रुपये नकद देकर सम्मानित किया गया । 

शहनाई से आपका इतना तादात्म्य स्थापित हो चुका है कि आज बिस्मिल्लाह खाँ से अलग शहनाई का नाम अधूरा प्रतीत होता है । शहनाई के शहनशाह और ' भारत रत्न ' उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की मंद आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए पंजाब के मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने पाँच लाख रुपए भेंट किये थे । कहा जाता है कि यदि बनारस भारत का हृदय है , तो बिस्मिल्लाह ख़ाँ उसकी आत्मा है । यदि यूँ कहा जाए कि उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ को पा कर संगीत ने जैसे उच्चतम शिखर को छु लिया था , तो कोई अतिश्योक्ति न होगी । 21 अगस्त , 2006 को लम्बी बीमारी के पश्चात् वाराणसी में जब आप का निधन हुआ , तो उत्तरप्रदेश में राजकीय शोक घोषित किया गया । युगों युगों तक आपकी शहनाई की गूंज लोगों के मन मस्तिष्क को पुलकित करती रहेगी ।