विष्णु नारायण भातखंडे,
जो 20वीं सदी में उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के
क्षेत्र में एक प्रमुख संगीतशास्त्री थे, ने सुझाव दिया कि कई पारंपरिक राग दस मूल
ठाटों पर आधारित हैं, जिन्हें संगीतीय स्केल या संरचनाओं के रूप
में समझा जा सकता है। ये दस ठाट बिलावल, कल्याण, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, असावरी, भैरवी, और तोड़ी शामिल हैं। मूल रूप से,
कई राग इन दस ठाटों में से एक से संबंधित
होते हैं। उदाहरण के लिए, राग श्री और पुरिया धनश्री पूर्वी ठाट के साथ
संवाद करते हैं, जबकि मलकौंस भैरवी से मिलता जुलता है,
और दरबारी कानड़ा असावरी ठाट में आधारित है।
हालांकि, भातखंडे की ठाट-राग सिद्धांत सही नहीं हो
सकता, लेकिन यह एक मूल्यवान वर्गीकरण प्रणाली के
रूप में काम करता है। इस दृष्टिकोण से, संगीतकारों और छात्रों को भारतीय शास्त्रीय
संगीत के जटिल विश्व में समझ और परिचित होने में सहायक है।
ठाट के निर्धारित नियम हैं:
एक ठाट में बारह स्वरों में से सात स्वर होते
हैं, जिसमें सात शुद्ध स्वर,
चार कोमल स्वर (रे,
गा, धा, नी), और एक तीव्र स्वर (मा) शामिल होते हैं,
जो एक चढ़ते क्रम में संगत होते हैं। इन
स्वरों के दोनों प्रकार का उपयोग किया जा सकता है।
एक ठाट केवल अरोहण या चढ़ते स्वरों से पहचाना
जा सकता है। ठाट स्वयं गाया नहीं जाता,
परंतु ठाट से उत्पन्न होने वाले राग गाए जाते
हैं। हर ठाट उस राग के नाम पर नामित होता है जिसका
वह प्रमुख राग है। उदाहरण के लिए, भैरवी एक प्रसिद्ध राग है, और उसी राग के ठाट का नाम भैरवी रखा गया है। भातखंडे प्रणाली के अनुसार,
मूलभूत दस ठाट निम्नलिखित हैं:
1. बिलावल : बिलावल दस ठाटों में सबसे मूल है। इस ठाट में सभी स्वर शुद्ध होते हैं या प्राकृतिक स्केल के सभी स्वर होते हैं। बिलावल राग आजकल अधिक प्रदर्शित नहीं होता, हालांकि इसका एक संवर्ती रूप 'अलहैया बिलावल' बहुत प्रसिद्ध है। यह एक प्रातः का राग है और इसकी चित्रात्मक वर्णन संगीत के अनुरूप एक संवेदनशील और समृद्ध माहौल पैदा करते हैं।
2. कल्याण - कल्याण थाट (Kalyāṇ Thāṭ) संगीत में एक मुख्य स्वरमंडल है जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक प्रमुख गायन शैली है। यह थाट अनुसार विभिन्न स्वरों की साजिश को परिभाषित करता है, जिसमें सात स्वरों का एक विशेष क्रम होता है - सा, रे, ग, म, प, ध, नी। कल्याण थाट के स्वरों के साथ जातियों और लयों को मिश्रित करके एक विशिष्ट राग बनाया जाता है। यह थाट प्राय: उत्तर भारतीय संगीत में प्रयुक्त होता है और उसमें अनेक प्रमुख राग जैसे कि यमन, शुद्ध कल्याण, तिलक कमोद, और विलांबित बहार शामिल होते हैं।
3. खमाज - खमाज थाट (Khamaj Thaat) भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक महत्वपूर्ण स्वरमंडल है जो उत्तर भारतीय संगीत परंपरा में प्रयोग होता है। इस थाट में सात मूल स्वर होते हैं - सा, रे, ग, म, प, ध, नी। खमाज थाट का उपयोग विभिन्न रागों के संगीत की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है, जैसे कि खमाज राग, देश, धुन, आसावरी, जैसे राग। इस थाट की मूल विशेषता है उसके उदास और मधुर स्वरों में जो इसे एक विशेष पहचान देती है। खमाज थाट के स्वरों का उपयोग विभिन्न भावनाओं और मूडों को संगीत में प्रकट करने के लिए किया जाता है।
4. काफी - काफी थाट (Kafi Thaat) भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक महत्वपूर्ण स्वरमंडल है जो उत्तर भारतीय संगीत परंपरा में प्रयोग होता है। इस थाट में सात मूल स्वर होते हैं - सा, रे, ग, म, प, ध, नी। काफी थाट का उपयोग विभिन्न रागों के संगीत में किया जाता है, जैसे कि काफी, खमाज, और अमिरी राग।
काफी थाट के स्वरों की विशेषता है उनका मधुर और प्रसन्न लय। इस थाट के स्वरों का उपयोग भावनात्मक एवं मनोरंजनात्मक गायन और संगीत में किया जाता है। काफी राग, जो काफी थाट पर आधारित होता है, एक प्रसिद्ध और पसंदीदा राग है जो भारतीय संगीत में अद्वितीय स्थान रखता है।
5. असावरी -
6. भैरवी
7. भैरव
8.मारवा
9.पूर्वी
10. तोड़ी