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आरोह - अवरोह - पकड़

 आरोह - अवरोह

आरोह - अवरोह :- स्वरों को नीचे से ऊपर की ओर अर्थात् मध्य ' स ' से तार ' सं ' की ओर जाने को ‘ आरोह ' कहते हैं । जैसे : स रे ग म प ध नि सं । आरोह में स्वर चढ़ते क्रम में होते हैं । अर्थात् स्वरों की आवाज़ एक के पश्चात् एक क्रमिक ऊँची होती जाती है । 

आरोह के विपरीत , स्वरों को ऊपर से नीचे की ओर अर्थात् तार ' सं ' से नीचे मध्य ' स ' पर वापिस आने को ' अवरोह ' कहते हैं । जैसे : सं नि ध प म ग रे स । अवरोह में स्वर उतरते हुए क्रम में गाए जाते हैं । अर्थात् एक के पश्चात् दूसरे स्वर की आवाज़ क्रमिक नीची होती जाती है । 

साधारण भाषा में आरोह का अर्थ ' स्वरों का चढ़ाव ' है और अवरोह का अर्थ ' स्वरों का उतराव ' है । गाने अथवा बजाने में यह दोनों क्रियायें बार - बार होती हैं । राग के नियमानुसार राग में आरोह - अवरोह का होना आवश्यक माना गया है । केवल आरोह - अवरोह से ही एक दम राग का स्वरूप सामने आ जाता है । जैसे : राग भूपाली का आरोह - अवरोह इस प्रकार है : 

आरोह : स रे ग प ध सं । 

अवरोह : सं ध प ग रे स । 

आरोह - अवरोह से राग में प्रयोग होने वाले स्वरों की जानकारी तो मिलती ही है , साथ ही वर्जित स्वरों से राग की जाति का भी पता चलता है । साधारणत : सभी रागों का आरोह मध्य ' स ' से आरम्भ होता है , क्योकि ' स ' स्वर रागों का आधार स्वर है । परन्तु किसी किसी राग में राग के चलनानुसार ' स ' स्वर को छोड़ कर ' नि स्वर से भी राग का आरोह आरम्भ किया जाता है । जैसे यमन अथवा कल्याण राग की आरोह में ‘ स रे ग ' कहने की अपेक्षा ' नि रे ग ' कहा जाता है । ऐसा करना राग के चलन पर निर्भर करता है । 

पकड़ 

किसी भी राग का छोटा परन्तु विशिष्ट स्वर समूह , जिससे राग पहचाना जा सके , राग की पकड़ ' कहलाता है । यह राग का मुख्य अंग होता है , जिससे राग तुरन्त पकड़ में या पहचान में आ जाता है । राग के आरोह - अवरोह से राग में लगने वाले स्वरों सम्बन्धी जानकारी मिलती है परन्तु पकड़ से राग में लगने वाले स्वरों का चलन स्पष्ट होता है । उदाहरण के लिए राग यमन की पकड़ है : नि रे ग , रे स , प म ग रे स । केवल इतना स्वर समुदाय कहने मात्र से ही राग यमन स्पष्ट हो जाता है । पकड़ के इसी महत्व के कारण राग गाते समय बार - बार पकड़ वाला स्वर समुदाय गाकर राग का स्वरूप स्पष्ट किया जाता है। 

इतना ही नहीं , केवल पकड़ से ही राग अपने मिलते - जुलते सम प्राकृतिक रागों से भिन्न हो जाता है । कुछ राग ऐसे होते हैं , जिनमें मिलते जुलते स्वरों का प्रयोग होता है । जैसे राग भूपाली और देशकार में बिल्कुल एक जैसे स्वर लगते हैं । कई बार ऐसे समप्राकृतिक रागों का आरोह - अवरोह बिल्कुल मिलता है । उदाहरण के लिए : 

राग भूपाली आरोह स रे ग प ध सं । अवरोह सं ध प ग रे स । 

राग देशकार आरोह स रे ग प ध सं । अवरोह सं ध प ग प , ग रे स । 

ऐसे मिलते जुलते राग केवल पकड़ गाने से एक दूसरे से भिन्न हो जाते हैं । कुछ राग के स्वरों का परस्पर मिलते - जुलते होने के बावजूद प्रत्येक राग का अपना विशेष चलन होता है । इस विशेष चलन अर्थात् पकड़ से ही राग पहचाना जाता है । राग भूपाली और देशकार की पकड़ इस प्रकार है : 

राग भूपाली स रे ग , प ग , ध प ग , रे स । 

राग देशकार प ध ग प , ग रे स , ध स । 

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि राग में पकड़ एक महत्वपूर्ण स्थान होता है ।