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कम्पन

किसी एक स्वर को उसके पूर्ववर्ती और परवर्ती श्रुति द्वय के बीच आन्दोलन करने को कपन कहा जाता है । अर्थात्‌ स्वर को हिलाने से कपन पैदा होता है । सितार पर जिस स्वर को कम्पित करना होता है उस स्वर के परदे पर उंगली रख कर उंगली को कम्पित किया जाता है । साथ ही मिज़राब द्वारा आघात किया जाता है । ऐसी क्रिया से मूल स्वर के पूर्ववर्ती स्वर के मध्य की श्रुतियों व स्वर को कम्पित किया जा सकता है । अतः उसके मूल स्वर से पूर्ववर्ती एवं परवर्ती लगने वाले स्वर एवं श्रुतियों का प्रयोग किसी भी स्वर पर तार को खींच कर प्रदर्शित किया जा सकता है ।
उदाहरण के तौर पर सितार वादन में राग दरबारी के कोमल गन्धार का प्रयोग स के परदे से ही खींची हुई अवस्था में ऋषभ से गन्धार को आन्दोलित अवस्था में प्रदर्शित करता है अर्थात्‌ कंपन द्वारा गंधार का उचित प्रयोग प्रदर्शन होता है ।
यह क्रिया भावों को उद्दीपन करने के लिए मुख्य रूप से प्रयोग की जाती है। इसको प्रत्येक स्वर पर और बिना जरूरत के नही करना चाहिए क्योंकि हर स्वर को हिला कर बजाने से बाज की गभीरता खत्म हो जाती है और स्वर को ज्य़ादा हिलाते रहने से स्वर की शुद्धता नष्ट हो जाती है ।