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राग पटदीप

यह राग मुख्य दस थाटों में से किसी के भी अन्तर्गत नही आता फिर भी इसे काफी थाट का राग माना गया है । थाट उपथाट पद्दति के अनुसार इसे काफी बिलावल थाटों के अन्तर्गत आना चाहिए । इस राग में ग कोमल तथा शेष सभी स्वर शुद्ध लगते है । इसकी जाति औढ़व - सपूर्ण है । इसके आरोह में रे - ध को वर्जित किया जाता है । इस राग का वादी पंचम तथा संवादी षडज़ है । यह उतरांगवादी राग है । इस राग को गाने बजाने का समय दिन का अन्तिम प्रहर है । इसका समप्रकृतिक राग भीमपलासी तथा पीलू है ।
भीमपलासी से बचाने के लिए इसमें शुद्ध निषाद का प्रयोग किया जाता है । क्योंकि भीमपलासी में ग नी कोमल का प्रयोग किया जाता है । दोनों काफी थाट के राग है । दोनों में ग कोमल का प्रयोग होता है और दोनों में म प ग स्वर संगति का प्रयोग करते है । पटदीप में बार - बार शुद्ध निषाद पर न्यास करते है । न्यास करने से ही पटदीप का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है ।
इसका दूसरा समप्राकृतिक राग पीलू है । पूर्वांग में नि सं गं रें सं नि स्वर संगति दोनो में प्रयोग की जाती है, जिससे यह दोनो मिलते जुलते राग है । पीलू से बचाने के लिए इसमें केवल ग कोमल का प्रयोग किया जाता है । जबकि पीलू में सप्तक के 12 स्वरों का प्रयोग होता है ।
पटदीप में शुद्ध निषाद पर न्यास पीलू की भान्ति किया जाता है । किन्तु जाति भेद और स्वर भेद होने से यह दोनो राग एक दूसरे से अलग हो जाते है ।

आरोह :- स नी़ स म प नी - सं ।

अवरोह :- सं नी ध म प - म - रे स ।

पकड़ :- म प नी,.... नी ध म प ।