हिन्दोस्तानी
भाषा में इसे काटना कहते है । बाएं हाथ की तर्जनी को एक स्वर (परदे) पर रखकर
मध्यमा उंगली द्वारा तार से उत्पन्न ध्वनि को मात्र काट कर तर्जनी द्वारा
अधिष्ठित स्थान के स्वर को ध्वनित करने की क्रिया को कृन्तन कहा जाता है । यह
तन्त्र वाद्य की विशिष्ट क्रिया है । अर्थात जब एक ही मिज़राब से दो, तीन, चार या अधिक स्वर अपने खड़े रूप में उंगलियों
की सहायता से बजाए जाए तो उसे कृन्तन कहते है । कृन्तन के लिए मध्यमा उंगली
द्वारा एक बार की अपेक्षा तीन चार बार शीघ्रता से ध्वनि को काटना तथा ध्वनित
करना अर्थात उठाना - रखना, उठाना - रखना इत्यादि क्रिया से
जो स्वरावली प्राप्त होती है उसे कृन्तन कहते है । इस क्रिया में एक बार ही दा
या रा बजाकर तर्जनी उंगली के अतिरिक्त मध्यमा एक के बाद एक क्रम से परदों पर
पड़ती रहती है । इन स्वरों को निकालने के लिए अलग से मिज़राब लगाने की आवश्यकता
नही पड़ती । आलाप करते समय तथा झाला वादन विधि में भी कृन्तन क्रिया चमत्कार
उत्पन करती है । सितार वादन में इस का प्रयोग करने से स्वरों के अलग-अलग टुकड़े
मालूम नही पड़ते बल्कि यह क्रिया एक स्वर का सम्बन्ध दूसरे स्वर से बनाए रखती है
। स्वर लिपि में कृन्तन के लिए अभी तक कोई चिन्ह प्रयुक्त नही हुआ है बल्कि जिन
स्वरों को कृन्तन द्वारा बजाना हो उस स्वर समूह के ऊपर (कृ) शब्द को लिख दिया
जाता है ।
उदाहरण :-
कृ
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कृ
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कृ
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कृ
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1.
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स्वर
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प़ म़
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ध़ प
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नी़ ध़
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स नी़
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बोल
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दा -
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- -
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दा -
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- -
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उंगलियां
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म त
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म त
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म त
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म त
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कृ
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कृ
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2.
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स्वर
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ध़ प़
म़
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नी़ ध़
प
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बोल
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दा - -
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दा - -
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उंगलियां
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म त त
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म त त
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कृ
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कृ
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कृ
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कृ
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कृ
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3.
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स्वर
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रे स
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स नी़
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रे स
|
रे
|
रे स
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बोल
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दा-
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- -
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- -
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-
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- -
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उंगलियां
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म त
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म त
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म त
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म त
|
म त
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